7th Pay Commission Changes: सरकारी कर्मचारियों की चिंता होगी कम, DA-सैलरी बढ़ेगी या अभी वही रहेगी, बाद में जेब पड़ेगी भारी!

Central Government Employees: सरकार द्वारा आठवें वेतन आयोग के गठन की तारीख का ऐलान अभी तक नहीं किया गया है लेकिन सरकारी कर्मचारियों के लिए एक अच्छी खबर सामने आई है। कर्मचारियों की मांग के बाद एक नई पेंशन योजना की शुरुआत 1 अप्रैल से होने जा रही है। इस योजना के तहत कर्मचारियों को पेंशन फंड में निवेश करने का मौका मिलेगा और सरकार भी इस फंड में योगदान करेगी। सरकारी कर्मचारियों ने पिछले कुछ वर्षों से आठवें वेतन आयोग के गठन की मांग की है और इस पर कई बैठकें भी हो चुकी हैं। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार कब तक इस आयोग का गठन करेगी। लेकिन कर्मचारियों के लिए एक सकारात्मक कदम उठाते हुए सरकार ने 1 अप्रैल से एकीकृत पेंशन योजना की शुरुआत का निर्णय लिया है। इस योजना का उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति के बाद वित्तीय सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।
एकीकृत पेंशन योजना क्या है?
इस एकीकृत पेंशन योजना के तहत, सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति से पहले उनके मूल वेतन और 12 महीने के महारघा भत्ते का औसत गारंटीकृत पेंशन के रूप में मिलेगा। इस योजना के अंतर्गत, कर्मचारियों को अपने पीएसीआई वेतन और डीए का 10 प्रतिशत यूपीएस में जमा करना होगा। इसके अलावा, सरकार पेंशन फंड में 18.5 प्रतिशत का योगदान करेगी। यह योजना कर्मचारियों को अधिक पेंशन सुरक्षा प्रदान करने का एक बड़ा कदम है, जिससे उन्हें अपने भविष्य के बारे में अधिक चिंतित होने की जरूरत नहीं होगी। कर्मचारियों को यह चुनाव दिया जाएगा कि वे नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) या यूनिवर्सल पेंशन स्कीम (UPS) में से एक का चयन करें।
पुरानी और नई पेंशन योजना में क्या अंतर है?
कई सालों से सरकारी कर्मचारियों के बीच पुरानी पेंशन व्यवस्था और नई पेंशन व्यवस्था के बीच विवाद चल रहा है। सरकारी कर्मचारी नई पेंशन योजना को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि यह योजना उनके भविष्य के लिए अनिश्चितता पैदा करती है। नई पेंशन योजना में, सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारियों को जो पेंशन मिलेगी वह उनके द्वारा किए गए निवेश और उसके परिणामों पर निर्भर करेगी।
नई पेंशन योजना में कर्मचारियों को अपने कार्यकाल में जितना पैसा बचाना होगा, उसी पर पेंशन का निर्धारण होगा। यानी जितना अधिक निवेश किया गया होगा और जितनी अधिक बचत की गई होगी, उसी के आधार पर पेंशन राशि तय होगी। इसके अलावा, नई पेंशन योजना में 60 प्रतिशत राशि कर्मचारियों को एकमुश्त मिलती है, जबकि 40 प्रतिशत वार्षिकी में निवेश किया जाता है। यहां तक कि कर्मचारियों के लिए यह भी अनिश्चितता है कि उन्हें अपने अंतिम वेतन का कितना प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलेगा। पेंशन का निर्धारण बाजार की स्थितियों पर निर्भर करता है, जिससे कर्मचारियों के लिए यह योजना जोखिम भरी बन सकती है। इसके विपरीत, पुरानी पेंशन व्यवस्था में सेवानिवृत्त कर्मचारियों को एक निश्चित पेंशन मिलती थी, जो सरकारी बजट से तय की जाती थी।
पुरानी पेंशन योजना की वापसी की मांग
सरकारी कर्मचारियों ने कई बार पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने की मांग की है। उनका कहना है कि नई पेंशन योजना के तहत, उनका भविष्य सुरक्षित नहीं है। उन्हें यह चिंता है कि उनके द्वारा किए गए निवेश और पेंशन की राशि भविष्य में बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करेगी, जो कि उन्हें असुरक्षित महसूस कराता है। इन समस्याओं को देखते हुए, कर्मचारियों ने कई प्रदर्शन और आंदोलन किए हैं, लेकिन सरकार ने अभी तक इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। हालांकि, कुछ राज्य सरकारों ने पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने के बारे में विचार करना शुरू कर दिया है।
राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) की शुरुआत
2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) की शुरुआत की गई थी। इस योजना का उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों के लिए एक स्थिर पेंशन प्रणाली तैयार करना था, जो सरकारी खजाने पर दबाव को कम कर सके। शुरुआत में, यह योजना केवल केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर लागू होती थी, लेकिन बाद में इसे राज्य सरकारों के कर्मचारियों के लिए भी लागू कर दिया गया। नेशनल पेंशन स्कीम के तहत कर्मचारियों का पेंशन फंड उनके द्वारा किए गए योगदान और निवेश से जुड़ा होता है। हालांकि, इस योजना में एक निश्चित पेंशन का निर्धारण नहीं किया गया है, और यह बाजार की स्थिति पर निर्भर करता है, जिससे कई कर्मचारी इससे असंतुष्ट हैं।