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High Court: पत्नी के नाम खरीदी गई प्रोपर्टी का कौन होगा मालिक, हाईकोर्ट का आया चौकनें वाला फैसला, जानें 

 
Haryana Kranti, चंडीगढ़:

Haryana Kranti, नई दिल्ली: हाईकोर्ट ने पारिवारिक संपत्ति विवाद में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर किसी व्यक्ति ने अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदकर रजिस्ट्री कराई है तो उसमें उसके रिश्तेदारों का भी हिस्सा होगा।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि रिश्तेदारों को संपत्ति पर तभी अधिकार नहीं माना जाएगा जब यह साबित हो जाए कि महिला ने संपत्ति अपनी कमाई से खरीदी है। लेकिन अगर महिला गृहिणी है और उसके नाम पर कोई संपत्ति खरीदी गई है, तो परिवार के बाकी सदस्यों का भी उस पर अधिकार होगा।

उच्च न्यायालय ने सुनाया फैसला

मृतक पिता की संपत्ति में अधिकार मांगने वाले बेटे द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा कि याचिकाकर्ता के पिता द्वारा खरीदी गई संपत्ति पारिवारिक संपत्ति मानी जाएगी, क्योंकि आम तौर पर एक हिंदू पति परिवार के लाभ के लिए संपत्ति खरीदता है। उसकी पत्नी का नाम.

न्यायालय ने कहा कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि संपत्ति पत्नी द्वारा अर्जित आय से खरीदी गई थी, तब तक यह माना जाएगा कि संपत्ति पति द्वारा अपनी आय से खरीदी गई है और परिवार का भी उस पर अधिकार होगा।

पिता की संपत्ति में हिस्सा मांगा

याचिका के अपीलकर्ता सौरभ गुप्ता ने अपने पिता द्वारा खरीदी गई संपत्ति में एक-चौथाई हिस्सा मांगते हुए एक सिविल मुकदमा दायर किया था और अदालत से उसे संपत्ति में सह-हिस्सेदार घोषित करने की मांग की थी।

उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि संपत्ति उनके दिवंगत पिता द्वारा खरीदी गई थी, इसलिए वह और उनकी मां संपत्ति में सह-हिस्सेदार हैं। सौरभ गुप्ता की मां इस मामले में प्रतिवादी थीं।

संपत्ति पर पूरे परिवार का अधिकार

याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि चूंकि संपत्ति उसकी मां, यानी मृतक पिता की पत्नी के नाम पर खरीदी गई थी, इसलिए संपत्ति को तीसरे पक्ष को हस्तांतरित किया जा सकता है, इसलिए उसने अदालत से तीसरे पक्ष को संपत्ति हस्तांतरित न करने का निषेधाज्ञा मांगी। पार्टी ने यह भी मांग की।

मामले में, प्रतिवादी और याचिकाकर्ता की मां ने लिखित बयान में अदालत को बताया कि यह संपत्ति उनके पति द्वारा उन्हें उपहार में दी गई थी, क्योंकि उनके पास आय का कोई अलग स्रोत नहीं था।

स्मरणीय है कि इस मामले में निचली अदालत ने अंतरिम निषेधाज्ञा के लिए आवेदन खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ बेटे ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। अपने फैसले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसी संपत्ति प्रथम दृष्टया संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति बन जाती है, जिस पर परिवार के प्रत्येक सदस्य का अधिकार होता है।