Haryana Cabinet : हरियाणा में 14 मंत्रियों की नियुक्ति पर विवाद, हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को किया तलब

Haryana Cabinet Minister Limit: हरियाणा विधानसभा में मंत्रियों की संख्या 15 प्रतिशत से अधिक होने पर विवाद खड़ा हो गया है। इसी मुद्दे पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है जिसमें राज्य सरकार के इस कदम को संविधान का उल्लंघन बताया गया है। याचिका पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस शील नागु और जस्टिस अनिल खेत्रपाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार और केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है। हाई कोर्ट ने इस मामले को अगली सुनवाई के लिए 19 दिसंबर के लिए सूचीबद्ध किया है और सभी पक्षों से अपनी-अपनी दलीलें पेश करने का आदेश दिया है।
हरियाणा में संविधान का उल्लंघन?
याचिकाकर्ता एडवोकेट जगमोहन सिंह भट्टी ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि हरियाणा में वर्तमान में 14 मंत्री हैं जो संविधान के 91वें संशोधन का उल्लंघन है। संशोधन के अनुसार किसी राज्य में कैबिनेट मंत्रियों की संख्या उस राज्य की विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या का 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है। हरियाणा विधानसभा में कुल 90 विधायक हैं इसलिए यहां अधिकतम 13.5 मंत्री ही नियुक्त किए जा सकते हैं। परंतु वर्तमान में 14 मंत्री नियुक्त हैं जो संविधान के अनुच्छेद 164(1) (ए) के प्रावधानों के खिलाफ है।
मंत्रियों की संख्या बढ़ाने का आरोप
याचिकाकर्ता ने इस नियुक्ति पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि विधायकों को खुश करने और समर्थन बनाए रखने के उद्देश्य से मंत्रियों की संख्या में इजाफा किया गया है। यह आरोप लगाया गया है कि इस प्रकार मंत्रियों की संख्या बढ़ाकर सरकार सार्वजनिक धन का दुरुपयोग कर रही है। इस याचिका में मुख्यमंत्री और अन्य 13 मंत्रियों के नाम सहित केंद्र सरकार और हरियाणा विधानसभा को प्रतिवादी बनाया गया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि मंत्रियों की संख्या बढ़ाने का सीधा असर राज्य की जनता पर पड़ रहा है क्योंकि इन मंत्रियों को मिलने वाला वेतन और सुविधाएं जनता की कर राशि से दी जा रही हैं। याचिकाकर्ता ने अदालत से अपील की है कि निर्धारित संख्या से अधिक मंत्रियों को हटाया जाए और जब तक याचिका पर फैसला नहीं आ जाता तब तक उन्हें मिलने वाले लाभ पर रोक लगाई जाए।
पहले भी उठ चुका है मुद्दा
हरियाणा के एडवोकेट जनरल ने कोर्ट को बताया कि इस मुद्दे पर पहले भी एक याचिका दायर की गई थी जिसमें सरकार ने जवाब दाखिल किया था। इसके बाद, अदालत ने वर्तमान याचिका को पहले से लंबित याचिका के साथ जोड़ते हुए 19 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश दिया है। संविधान के 91वें संशोधन के अनुसार किसी भी राज्य में कैबिनेट मंत्रियों की संख्या उस राज्य की विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या का 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है। यह प्रावधान इसलिए लाया गया था ताकि छोटे राज्यों में मंत्रिमंडल का आकार संतुलित रहे और जनता के धन का दुरुपयोग न हो। हालांकि याचिकाकर्ता का कहना है कि हरियाणा सरकार ने इस प्रावधान का उल्लंघन किया है।
याचिकाकर्ता का तर्क और मांग
याचिकाकर्ता ने याचिका में यह भी कहा है कि हरियाणा सरकार ने मंत्रियों की संख्या बढ़ाकर राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि विधायकों को खुश करने के लिए राज्य सरकार ने मंत्रिमंडल के आकार को बढ़ाया है, जो संविधान की भावना के खिलाफ है। याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट से यह मांग की है कि संविधान के 15 प्रतिशत के प्रावधान का सख्ती से पालन करवाया जाए और तय संख्या से अधिक मंत्रियों को हटाया जाए। साथ ही जब तक याचिका लंबित रहती है तब तक इन मंत्रियों को मिलने वाले भत्तों और सुविधाओं पर रोक लगाई जाए।
सभी पक्षों से जवाब तलब
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए उन्हें 19 दिसंबर को होने वाली सुनवाई से पहले अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि सभी पक्षों को अपनी दलीलें पेश करनी होंगी ताकि मामले की निष्पक्ष सुनवाई हो सके। हरियाणा में मंत्रियों की संख्या को लेकर हुआ यह विवाद राज्य के मंत्रिमंडल के आकार और संविधान के प्रावधानों पर सवाल खड़ा करता है। यह मुद्दा खासकर उस समय पर संवेदनशील हो जाता है जब राज्य सरकार के मंत्रिमंडल में विस्तार संविधान की सीमा से बाहर जाकर किया गया हो। अब देखना यह है कि हाई कोर्ट इस मामले में क्या फैसला देती है और क्या सरकार अपने मंत्री पदों में कटौती करती है या नहीं।