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राजस्थान के इन 294 गांवों की जमीन होगी अधिग्रहण, बनेगा 110 किलोमीटर लंबा बाइपास, करोड़ों रुपये मिलेगा मुआवजा

नॉर्दर्न रिंग रोड परियोजना के लिए जयपुर जिला कलेक्टर से 294 गांवों की जमीन की खसरावार रिपोर्ट मांगी गई है। इस परियोजना के तहत जमीन अधिग्रहण के लिए निम्नलिखित तहसीलों से गांवों का चयन किया गया है:
 
Northern Ring Road

नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) और जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) मिलकर राजस्थान की राजधानी जयपुर में नॉर्दर्न रिंग रोड परियोजना को साकार करने में जुटे हैं। इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि यह परियोजना जयपुर की शहरी सीमा से भारी वाहनों के ट्रैफिक को कम करने में मदद करेगी। यह परियोजना 294 गांवों की जमीन पर बनेगी और इसकी कुल लंबाई 110 किलोमीटर होगी।

नॉर्दर्न रिंग रोड के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया

नॉर्दर्न रिंग रोड परियोजना के लिए जयपुर जिला कलेक्टर से 294 गांवों की जमीन की खसरावार रिपोर्ट मांगी गई है। इस परियोजना के तहत जमीन अधिग्रहण के लिए निम्नलिखित तहसीलों से गांवों का चयन किया गया है:

तहसील गांवों की संख्या
आमेर 90 गांव
जमवारामगढ़ 60 गांव
सांगानेर 32 गांव
जयपुर तहसील 36 गांव
फुलेरा 21 गांव
चौमूं 14 गांव
बस्सी 13 गांव
मौजमाबाद 12 गांव
कालवाड़ 12 गांव
किशनगढ़-रेनवाल 4 गांव

फ़िलहाल आगरा रोड से दिल्ली बाइपास तक 45 किलोमीटर लंबा रूट बनाने के लिए 34 गांवों की जमीन पर काम शुरू हो चुका है। अधिकारियों ने बताया कि यह एलाइनमेंट तैयार कर लिया गया है और जल्द ही निर्माण कार्य शुरू होगा।

जयपुर को मिलेगी ट्रैफिक से राहत

प्रोजेक्ट डायरेक्टर अजय आर्य ने बताया कि नॉर्दर्न रिंग रोड का मुख्य उद्देश्य जयपुर के शहरी इलाकों से गुजरने वाले भारी वाहनों की आवाजाही को कम करना है। इससे न केवल जयपुर की कॉलोनियों को हेवी ट्रैफिक से राहत मिलेगी बल्कि सड़क सुरक्षा में भी सुधार होगा। इसके साथ ही स्थानीय निवासियों को प्रदूषण और शोरगुल से भी राहत मिलेगी।

किसानों को मिलेगा मुआवजा

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने जयपुर में राइजिंग राजस्थान समिट के दौरान घोषणा की थी कि यह परियोजना किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगी। उन्होंने कहा कि रिंग रोड बनने के बाद आसपास की जमीनों की कीमत पांच गुना तक बढ़ जाएगी। इसके तहत अधिग्रहित जमीन में से 40% विकसित जमीन किसानों को वापस दी जाएगी।

इसके अलावा विकसित जमीन का 20% हिस्सा इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के लिए प्रयोग होगा जबकि 40% जमीन सरकार के अधीन रहेगी। इस योजना का उद्देश्य किसानों को आर्थिक लाभ पहुंचाना और परियोजना को तेजी से पूरा करना है।