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राजस्थान के इस गांव के लिए महात्मा का आशीर्वाद बना सुरक्षा कवच, 300 साल से एक भी घर पर नहीं है दरवाजा, फिर भी नहीं होती चोरी

सारण का खेड़ा गांव में कुछ लोगों ने आधुनिकता की ओर कदम बढ़ाते हुए अपने घरों के मुख्य द्वार पर किवाड़ लगाने की कोशिश की थी। लेकिन इस परंपरा के तोड़ने का परिणाम उनके लिए हानिकारक साबित हुआ।
 
Bhilwara of Rajasthan

राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में मांडलगढ़ उपखंड के महुआ पंचायत के अंतर्गत आने वाला सारण का खेड़ा गांव भारत में एक अनूठी मिसाल के रूप में देखा जाता है। लगभग 300 साल से इस गांव में एक अद्भुत परंपरा चली आ रही है जहां किसी भी घर के मुख्य दरवाजे पर किवाड़ या गेट नहीं लगाए गए हैं। करीब 100 परिवारों का यह गांव न केवल इस अनोखी परंपरा को निभाता आ रहा है बल्कि यहां अब तक कोई चोरी या लूटपाट की घटना भी नहीं हुई है।

गांव के बुजुर्ग शंकरसिंह राजपूत बताते हैं कि यह परंपरा महात्मा भगवानदास की वजह से शुरू हुई थी। लगभग तीन शताब्दी पहले भगवानदास ने गांव के पास उवली नदी के किनारे स्थित शिव मंदिर में तपस्या की थी। जाते समय उन्होंने गांववासियों को यह वचन दिया कि अगर वे अपने घरों पर दरवाजे नहीं लगाएंगे तो यहां चोरी जैसी घटनाएं नहीं होंगी और गांव में सुख-शांति बनी रहेगी। तब से लेकर आज तक यहां के लोग इस परंपरा का पालन कर रहे हैं।

परंपरा तोड़ने वालों को भुगतना पड़ा नुकसान

सारण का खेड़ा गांव में कुछ लोगों ने आधुनिकता की ओर कदम बढ़ाते हुए अपने घरों के मुख्य द्वार पर किवाड़ लगाने की कोशिश की थी। लेकिन इस परंपरा के तोड़ने का परिणाम उनके लिए हानिकारक साबित हुआ। गांव के बुजुर्गों और स्थानीय निवासियों के अनुसार जिन लोगों ने किवाड़ लगवाए उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। लोगों का मानना है कि ऐसा करने से उनके घरों में अशांति और बीमारियां बढ़ीं। इसके बाद उन्होंने दरवाजे हटवा दिए और पुरानी परंपरा को वापस अपनाया।

पुलिस के लिए एक प्रेरणा

यह गांव कानून व्यवस्था को लेकर एक उदाहरण भी बना हुआ है। यहां के निवासियों का कहना है कि चोरी और लूट जैसी घटनाएं न होने से गांव पुलिस के लिए एक प्रेरणा बन गया है। पुलिस अधिकारियों के अनुसार जहां एक ओर शहरों में चोरी की घटनाएं आम होती हैं वहीं सारण का खेड़ा गांव जैसे स्थान समाज में एक सकारात्मक उदाहरण पेश कर रहे हैं।

अन्य गांव भी ले सकते हैं सीख

सारण का खेड़ा और शनि शिंगणापुर गांव की यह परंपरा देश के अन्य गांवों के लिए भी एक सीख है। बिना ताले-चाबी के इन गांवों में रहने वाले लोग जिस तरह से अपनी परंपरा को निभाते आ रहे हैं वह यकीनन एक प्रेरणादायक है। भारत के कई हिस्सों में आज भी धार्मिक आस्था और परंपराओं को अत्यधिक महत्व दिया जाता है लेकिन सारण का खेड़ा जैसे गांवों की परंपरा ने यह साबित कर दिया है कि सद्भाव और विश्वास से ही समाज में शांति और सुरक्षा का वातावरण बनाया जा सकता है।

जानिए क्यों नहीं होती है चोरी?

इन गांवों में दरवाजे न होने के बावजूद चोरी न होने का कारण वहां की आस्था और मान्यताओं में छिपा हुआ है। सारण का खेड़ा गांव के लोग मानते हैं कि महात्मा भगवानदास की कृपा से उनके गांव पर ऐसी सुरक्षा है कि कोई भी व्यक्ति बुरी नीयत से गांव में प्रवेश नहीं कर सकता। इसी विश्वास के कारण यहां के लोगों ने कभी अपने घरों के बाहर दरवाजे लगाने की जरूरत महसूस नहीं की। यह न केवल उनके धार्मिक विश्वास का प्रतीक है बल्कि समाज में एक नई परंपरा की शुरुआत भी करता है।

महाराष्ट्र का बिना दरवाजों वाला गांव

सारण का खेड़ा ही नहीं महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर जिले का शनि शिंगणापुर गांव भी इसी परंपरा का एक उदाहरण है। यहां भी किसी भी घर के बाहर दरवाजे नहीं हैं। शनि देवता का आशीर्वाद माने जाने वाले इस गांव में भी आज तक चोरी की कोई घटना नहीं हुई है। यहां के लोग मानते हैं कि शनि देव की कृपा से उनके गांव में चोरी नहीं हो सकती। इसी विश्वास के चलते घरों में दरवाजे नहीं लगाए जाते। कुछ लोग सिर्फ पालतू जानवरों को घर में न घुसने देने के लिए लकड़ी की टांटी का इस्तेमाल करते हैं लेकिन लोहे की फाटक का इस्तेमाल नहीं किया जाता।